यूँ मिरे ज़ेहन में लर्ज़ां है तिरा अक्स-ए-जमील
दिल-ए-मायूस में यूँ गाहे उभरती है आस
टिमटिमाता है वो नौ-ख़ेज़ सितारा जैसे
दूर मस्जिद के उस उभरे हुए मीनार के पास
Habib Jalib
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Wasi Shah
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Javed Akhtar
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1111) Peoples Rate This
होता नहीं ज़ौक़-ए-ज़िंदगी कम
आँसुओं में भिगो के आँखों को
अंदाज़ हू-ब-हू तिरी आवाज़-ए-पा का था
सुब्ह होते ही निकल आते हैं बाज़ार में लोग
मैं ने इस दश्त की वुसअत में शबिस्ताँ पाए
तेरी महफ़िल भी मुदावा नहीं तन्हाई का
अपने माहौल से थे क़ैस के रिश्ते क्या क्या
ज़िंदगी शम्अ की मानिंद जलाता हूँ 'नदीम'
ज़िक्र-ए-मिर्रीख़-ओ-मुश्तरी के साथ
जाने कहाँ थे और चले थे कहाँ से हम
जब चटानों से लिपटता है समुंदर का शबाब
फूलों से लहू कैसे टपकता हुआ देखूँ