वो दौर झील के पानी में तैरता है चाँद
पहाड़ियों के अँधेरों पे नूर छाने लगा
वो एक खोह में इक बद-नसीब चरवाहा
भिगो के आँसुओं में एक गीत गाने लगा
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Wasi Shah
Habib Jalib
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1043) Peoples Rate This
वो दूर झील के पानी में तैरता है चाँद
कई बरस से है वीरान मर्ग़ज़ार-ए-शबाब
मैं वो शाएर हूँ जो शाहों का सना-ख़्वाँ न हुआ
खड़ा था कब से ज़मीं पीठ पर उठाए हुए
फ़रेब खाने को पेशा बना लिया हम ने
उन का आना हश्र से कुछ कम न था
जंगल की आग
हर लम्हा अगर गुरेज़-पा है
वक़्फ़ा
ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-दौराँ की तरफ़ यूँ आया
अब तो शहरों से ख़बर आती है दीवानों की
गाएँ डकराती हुई पगडंडियों पर आ गईं