गाएँ डकराती हुई पगडंडियों पर आ गईं
मुरलियाँ हाथों में ले कर मस्त चरवाहे बढ़े
बैरियों के धुँदले सायों में खड़ा हूँ मुंतज़िर
एक लड़की को गुज़रना है यहाँ से दिन-चढ़े
Anwar Masood
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अब तो शहरों से ख़बर आती है दीवानों की
रेस्तोराँ
बूढ़े माँ बाप बिलकते हुए घर को पलटे
जी चाहता है फ़लक पे जाऊँ
दिल गया था तो ये आँखें भी कोई ले जाता
लड़कियाँ चुनती हैं गेहूँ की सुनहरी बालियाँ
अंदाज़ हू-ब-हू तिरी आवाज़-ए-पा का था
कुंज-ए-ज़िंदाँ में पड़ा सोचता हूँ
हम कभी इश्क़ को वहशत नहीं बनने देते
मैं कश्ती में अकेला तो नहीं हूँ
मरूँ तो मैं किसी चेहरे में रंग भर जाऊँ
अपनी आवाज़ की लर्ज़िश पे तो क़ाबू पा लो