मर जाता हूँ जब ये सोचता हूँ
मैं तेरे बग़ैर जी रहा हूँ
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हम उन के नक़्श-ए-क़दम ही को जादा करते रहे
चाँद उस रात भी निकला था मगर उस का वजूद
ख़ुदा करे कि तिरी उम्र में गिने जाएँ
ये भी क्या चाल है हर गाम पे महशर का गुमाँ
मुझे मंज़ूर गर तर्क-ए-तअल्लुक़ है रज़ा तेरी
तुझे खो कर भी तुझे पाऊँ जहाँ तक देखूँ
तिरी ज़ुल्फ़ें हैं कि सावन की घटा छाई है
शाम को सुब्ह-ए-चमन याद आई
अजब सुरूर मिला है मुझे दुआ कर के
वक़्त
मैं किसी शख़्स से बेज़ार नहीं हो सकता
गीत