ख़ुदा करे कि तिरी उम्र में गिने जाएँ
वो दिन जो हम ने तिरे हिज्र में गुज़ारे थे
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वो पानी भरने चली इक जवान पंसारी
वक़्त
सारी दुनिया हमें पहचानती है
चाँद उस रात भी निकला था मगर उस का वजूद
कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा
आख़िर दुआ करें भी तो किस मुद्दआ के साथ
दरांती
आँख खुल जाती है जब रात को सोते सोते
आज पनघट पे ये गाता हुआ कौन आ निकला
मुदावा हब्स का होने लगा आहिस्ता आहिस्ता
जिस भी फ़नकार का शहकार हो तुम
आग़ोश में महकोगे दिखाई नहीं दोगे