किस दिल से करूँ विदाअ' तुझ को
टूटा जो सितारा बुझ गया है
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जिस भी फ़नकार का शहकार हो तुम
गली के मोड़ पे बच्चों के एक जमघट में
पाबंदी
ढलान
रेस्तोराँ
जी चाहता है फ़लक पे जाऊँ
कई बरस से है वीरान मर्ग़ज़ार-ए-शबाब
साँस लेना भी सज़ा लगता है
लबों पे नर्म तबस्सुम रचा के धुल जाएँ
ज़िंदगी शम्अ की मानिंद जलाता हूँ 'नदीम'
तुझ से किस तरह मैं इज़हार-ए-तमन्ना करता
पौ फटे रेंगते झरने पे ये कौन आया है