मिरा वजूद मिरी रूह को पुकारता है
तिरी तरफ़ भी चलूँ तो ठहर ठहर जाऊँ
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यूँ मिरे ज़ेहन में लर्ज़ां है तिरा अक्स-ए-जमील
गुलों में रंग तो था रंग में जलन तो न थी
सुब्ह होते ही निकल आते हैं बाज़ार में लोग
लब-ए-ख़ामोश से इफ़्शा होगा
किस तवक़्क़ो पे किसी को देखें
साँस लेना भी सज़ा लगता है
ढलान
दिलों से आरज़ू-ए-उम्र-ए-जावेदाँ न गई
हम कभी इश्क़ को वहशत नहीं बनने देते
पा कर भी तो नींद उड़ गई थी
ये भी क्या चाल है हर गाम पे महशर का गुमाँ
मुझे तलाश करो