बिहार Poetry (page 29)

चला हूँ अपनी मंज़िल की तरफ़ तो शादमाँ हो कर

फ़िगार उन्नावी

शौक़ीन मिज़ाजों के रंगीन तबीअ'त के

फ़ाज़िल जमीली

मिरे वजूद को परछाइयों ने तोड़ दिया

फ़ाज़िल जमीली

दिल के मकाँ में आँख के आँगन में कुछ न था

फ़ाज़िल अंसारी

शगुफ़्ता बाग़-ए-सुख़न है हमीं से ऐ 'साबिर'

फ़ज़ल हुसैन साबिर

इधर भी देख ज़रा बे-क़रार हम भी हैं

फ़ज़ल हुसैन साबिर

मैं ख़ुद हूँ नक़्द मगर सौ उधार सर पर है

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

जुगनू हवा में ले के उजाले निकल पड़े

फ़य्याज़ फ़ारुक़ी

कोई आँख चुपके चुपके मुझे यूँ निहारती है

फ़े सीन एजाज़

होश ओ ख़िरद गँवा के तिरे इंतिज़ार में

फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी

ये कैसी रुत आ गई जुनूँ की

फ़ारूक़ नाज़की

एक नज़्म जंगलों के नाम

फ़ारूक़ नाज़की

मैं ताइर-ए-वजूद या बर्ग-ए-ख़याल था

फ़ारूक़ मुज़्तर

ख़ुशी से फूलें न अहल-ए-सहरा अभी कहाँ से बहार आई

फ़ारूक़ बाँसपारी

जंगल उगा था हद्द-ए-नज़र तक सदाओं का

फ़ारिग़ बुख़ारी

हुए हैं सर्द दिमाग़ों के दहके दहके अलाव

फ़ारिग़ बुख़ारी

देखे कोई जो चाक-ए-गरेबाँ के पार भी

फ़ारिग़ बुख़ारी

आई ख़िज़ाँ चमन में गए दिन बहार के

फ़रहत क़ादरी

जो कुछ भी है नज़र में सो वहम-ए-नुमूद है

फ़रहत कानपुरी

ये बाग़ ज़िंदा रहे ये बहार ज़िंदा रहे

फ़रहत एहसास

पैकर-ए-अक़्ल तिरे होश ठिकाने लग जाएँ

फ़रहत एहसास

ये कहाँ से मौज-ए-तरब उठी कि मलाल दिल से निकल गए

फ़रीद जावेद

ये कहाँ से मौज-ए-तरब उठी कि मलाल दिल से निकल गए

फ़रीद जावेद

किस से वफ़ा की है उमीद कौन वफ़ा-शिआर है

फ़रीद जावेद

किस से वफ़ा की है उमीद कौन वफ़ा-शिआ'र है

फ़रीद जावेद

काग़ज़ के फूल

फ़रीद इशरती

जला के दामन-ए-हस्ती का तार तार उठा

फ़रीद इशरती

कोई जब मिल के मुस्कुराया था

फ़रह इक़बाल

हमारे साथ उमीद-ए-बहार तुम भी करो

फ़राग़ रोहवी

तिनकों से खेलते ही रहे आशियाँ में हम

फ़ानी बदायुनी

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