बिहार Poetry (page 7)

मय हो साग़र में कि ख़ूँ रात गुज़र जाएगी

सय्यद आबिद अली आबिद

किसी की इश्वा-गरी से ब-ग़ैर-ए-फ़स्ल-ए-बहार

सय्यद आबिद अली आबिद

हम बिन ग़म-ए-यार भी जिए हैं

सय्यद आबिद अली आबिद

गुलों की ख़ूँ-शुदगी को शगुफ़्तगी न समझ

सय्यद आबिद अली आबिद

दिल का मोआ'मला निगह-ए-आशना के साथ

सय्यद आबिद अली आबिद

दिल है आईना-ए-हैरत से दो-चार आज की रात

सय्यद आबिद अली आबिद

चैन पड़ता है दिल को आज न कल

सय्यद आबिद अली आबिद

आई सहर क़रीब तो मैं ने पढ़ी ग़ज़ल

सय्यद आबिद अली आबिद

गुलज़ार-ए-वतन

सुरूर जहानाबादी

बुलबुल ओ परवाना

सुरूर जहानाबादी

कभी अपने इश्क़ पे तब्सिरे कभी तज़्किरे रुख़-ए-यार के

सुरूर बाराबंकवी

चमन में लाला-ओ-गुल पर निखार भी तो नहीं

सुरूर बाराबंकवी

न कोई नीलम न कोई हीरा न मोतियों की बहार देखी

सूरज नारायण

जो कश्मकश थी तिरा इंतिज़ार करते हुए

सुलतान निज़ामी

मैं ख़िज़ाँ को बहार करता हूँ

सुलतान फ़ारूक़ी

तुझे क्या हुआ है बता ऐ दिल न सुकून है न क़रार है

सुलैमान अहमद मानी

नंग-ए-एहसास है अंदोह-ए-ग़रीब-उल-वतनी

सुलैमान आसिफ़

हँस दिए ज़ख़्म-ए-जिगर जैसे कि गुल-हा-ए-बहार

सुहैल काकोरवी

मैं क्या करूँ कोई सब मेरे इख़्तियार में है

सुहैल अहमद ज़ैदी

बहार का क़र्ज़

सूफ़िया अनजुम ताज

तुम आसमाँ की तरफ़ न देखो

सूफ़ी तबस्सुम

तिरी महफ़िल में सोज़-ए-जावेदानी ले के आया हूँ

सूफ़ी तबस्सुम

शजर शजर निगराँ है कली कली बेदार

सूफ़ी तबस्सुम

सायों से लिपट रहे थे साए

सूफ़ी तबस्सुम

सौ बार चमन महका सौ बार बहार आई

सूफ़ी तबस्सुम

नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़्साने

सूफ़ी तबस्सुम

नज़र में ढल के उभरते हैं दिल के अफ़्साने

सूफ़ी तबस्सुम

मिटी मिटी हुई यादों के दाग़ क्या जलते?

सूफ़ी तबस्सुम

इलाज-ए-दर्द-ए-दिल-ए-सोगवार हो न सका

सूफ़ी तबस्सुम

अब ख़िज़ाँ आए या बहार आए

सोज़ नजीबाबादी

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