बहाने Poetry (page 4)

सताया आज मुनासिब जगह पे बारिश ने

इक़बाल अशहर

फिर तिरा ज़िक्र किया बाद-ए-सबा ने मुझ से

इक़बाल अशहर

कितने भूले हुए नग़्मात सुनाने आए

इक़बाल अशहर

वो जो कहीं नहीं है

इंजिला हमेश

ख़ुदा तू इतनी भी महरूमियाँ न तारी रख

इमरान हुसैन आज़ाद

फ़र्ज़ करो

इब्न-ए-इंशा

चाँद के तमन्नाई

इब्न-ए-इंशा

रात के ख़्वाब सुनाएँ किस को रात के ख़्वाब सुहाने थे

इब्न-ए-इंशा

मुझे फ़रेब-ए-वफ़ा दे के दम में लाना था

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

क़ासिद-ए-ख़ुश-फ़ाल लाया उस के आने की ख़बर

हसरत अज़ीमाबादी

जान कर कहता है हम से अपने जाने की ख़बर

हसरत अज़ीमाबादी

फ़ैसला हिज्र का मंज़ूर भी हो सकता है

हाशिम रज़ा जलालपुरी

सब की बिगड़ी को बनाने निकले

हसन कमाल

गए दिनों में रोना भी तो कितना सच्चा था

हसन अकबर कमाल

क्या होता है ख़िज़ाँ बहार के आने जाने से

हसन अकबर कमाल

नश्शा करने का बहाना हो गया

हनीफ़ तरीन

बज़्म-ए-तकल्लुफ़ात सजाने में रह गया

हफ़ीज़ मेरठी

किताबें

गुलज़ार

क़त्ल उश्शाक़ किया करते हैं

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

आँखों में नए रंग सजाने नहीं उतरे

गिरिजा व्यास

कहीं कहीं से पुर-असरार हो लिया जाए

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

हम ने तो बे-शुमार बहाने बनाए हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

नुमूद पाते हैं मंज़रों की शिकस्त से फ़तह के बहाने

ग़ुलाम हुसैन साजिद

गंदुम की बालियाँ

ग़ज़नफ़र

ख़्वाब आँखों की गली छोड़ के जाने निकले

ग़यास मतीन

ग़म-ए-दुनिया से गर पाई भी फ़ुर्सत सर उठाने की

ग़ालिब

मता-ए-इश्क़ ज़रा और सर्फ़-ए-नाज़ तो हो

गौहर होशियारपुरी

वो चुप-चाप आँसू बहाने की रातें

फ़िराक़ गोरखपुरी

लब पे झूटे तराने होते हैं

फ़िगार उन्नावी

कुछ नया करने की ख़्वाहिश में पुराने हो गए

फ़सीह अकमल

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