बहाने Poetry (page 5)

किसी बहाने भी दिल से अलम नहीं जाता

फ़र्रुख़ जाफ़री

रात से एक सोच में गुम हूँ

फरीहा नक़वी

ऐ मिरी ज़ात के सुकूँ आ जा

फरीहा नक़वी

तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शाम

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

शाएर लोग

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

इंतिसाब

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

आख़िरी ख़त

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

हसरत-ए-दीद में गुज़राँ हैं ज़माने कब से

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

उस का दिल तो अच्छा दिल था

फ़हमीदा रियाज़

धूप सा यू कपूल नारी है

फ़ाएज़ देहलवी

गली से अपनी उठाता है वो बहाने से

एजाज़ गुल

खींच कर अक्स फ़साने से अलग हो जाओ

दिलावर अली आज़र

आँख में ख़्वाब ज़माने से अलग रक्खा है

दिलावर अली आज़र

भूक में दबे बचपन

दर्शिका वसानी

तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं

दाग़ देहलवी

तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं

दाग़ देहलवी

डरते हैं चश्म ओ ज़ुल्फ़ ओ निगाह ओ अदा से हम

दाग़ देहलवी

बदन को अपनी बिसात तक तो पसारना था

चंद्र प्रकाश शाद

ख़िज़ाँ के जाने से हो या बहार आने से

बिस्मिल अज़ीमाबादी

उठे तिरी महफ़िल से तो किस काम के उठ्ठे

बेख़ुद देहलवी

लुत्फ़ से मतलब न कुछ मेरे सताने से ग़रज़

बेख़ुद देहलवी

तिरा कुश्ता उठाया अक़रबा ने

बयान यज़दानी

ख़ूँ बहाने के हैं हज़ार तरीक़

बयान मेरठी

ख़त में क्या क्या लिखूँ याद आती है हर बात पे बात

बासिर सुल्तान काज़मी

न आने के उन के बहाने भी देखे

बशीर महताब

यही रस्ता है अब यही मंज़िल

बाक़ी सिद्दीक़ी

दाग़-ए-दिल हम को याद आने लगे

बाक़ी सिद्दीक़ी

हादसात अब के सफ़र में नए ढब से आए

बकुल देव

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