तुम्हारी याद के जब ज़ख़्म भरने लगते हैं
किसी बहाने तुम्हें याद करने लगते हैं
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इज्ज़-ए-अहल-ए-सितम की बात करो
फिर नज़र में फूल महके दिल में फिर शमएँ जलीं
हम तो मजबूर-ए-वफ़ा हैं
शाह-राह
अब जो कोई पूछे भी तो उस से क्या शरह-ए-हालात करें
चंग ओ नय रंग पे थे अपने लहू के दम से
किस हर्फ़ पे तू ने गोश-ए-लब ऐ जान-ए-जहाँ ग़म्माज़ किया
जश्न का दिन
बे-दम हुए बीमार दवा क्यूँ नहीं देते
फ़रेब-ए-आरज़ू की सहल-अँगारी नहीं जाती
यूँ सजा चाँद कि झलका तिरे अंदाज़ का रंग
सबा के हाथ में नर्मी है उन के हाथों की