चंग ओ नय रंग पे थे अपने लहू के दम से
दिल ने लय बदली तो मद्धम हुआ हर साज़ का रंग
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उम्मीद-ए-सहर की बात सुनो
यूँ सजा चाँद कि झलका तिरे अंदाज़ का रंग
जो नफ़स था ख़ार-ए-गुलू बना जो उठे थे हाथ लहू हुए
जब तेरी समुंदर आँखों में
नज़्म
हम सहल-तलब कौन से फ़रहाद थे लेकिन
ये फ़स्ल उमीदों की हमदम
एक तराना मुजाहिदीन-ए-फ़िलिस्तीन के लिए
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई
आज तंहाई किसी हमदम-ए-देरीं की तरह
ऐ हबीब-ए-अम्बर-दस्त!