ब्रह्म Poetry (page 4)

तबस्सुम में न ढल जाता गुदाज़ ग़म तो क्या करते

हमीद नागपुरी

कल शाम लब-ए-बाम जो वो जल्वा-नुमा था

हमीद जालंधरी

ज़िंदे वही हैं जो कि हैं तुम पर मरे हुए

हैदर अली आतिश

रोज़-ए-मौलूद से साथ अपने हुआ ग़म पैदा

हैदर अली आतिश

रफ़्तगाँ का भी ख़याल ऐ अहल-ए-आलम कीजिए

हैदर अली आतिश

इस शश-जिहत में ख़ूब तिरी जुस्तुजू करें

हैदर अली आतिश

चाक-ए-दामाँ न रहा चाक-ए-गरेबाँ न रहा

हफ़ीज़ जौनपुरी

अब ख़ूब हँसेगा दीवाना

हफ़ीज़ जालंधरी

मोहब्बत करने वाले कम न होंगे

हफ़ीज़ होशियारपुरी

अब तेरी ज़रूरत भी बहुत कम है मिरी जाँ

हबीब जालिब

रोना इन का काम है हर दम जल जल कर मर जाना भी

हबीब मूसवी

बना के आईना-ए-तसव्वुर जहाँ दिल-ए-दाग़-दार देखा

हबीब मूसवी

तुम अपने शिकवे की बातें न खोद खोद के पूछो

ग़ालिब

नश्शा-हा शादाब-ए-रंग ओ साज़-हा मस्त-ए-तरब

ग़ालिब

हो गई है ग़ैर की शीरीं-बयानी कारगर

ग़ालिब

ग़म नहीं होता है आज़ादों को बेश अज़-यक-नफ़स

ग़ालिब

अपने ग़म का मुझे कहाँ ग़म है

फ़िराक़ गोरखपुरी

ग़म-ए-जानाँ से रंगीं और कोई ग़म नहीं होता

फ़िगार उन्नावी

तिरी जुस्तुजू में देखा मैं कहाँ कहाँ से गुज़रा

फ़िगार मुरादाबादी

कुछ तो मुझे महबूब तिरा ग़म भी बहुत है

फ़ज़्ल अहमद करीम फ़ज़ली

मैं अपने-आप से बरहम था वो ख़फ़ा मुझ से

फ़रहत शहज़ाद

मुद्दतों हम से मुलाक़ात नहीं करते हैं

फ़रह इक़बाल

मैं ने 'फ़ानी' डूबती देखी है नब्ज़-ए-काएनात

फ़ानी बदायुनी

यूँ नज़्म-ए-जहाँ दरहम-ओ-बरहम न हुआ था

फ़ानी बदायुनी

वाहिमे की ये मश्क़-ए-पैहम क्या

फ़ानी बदायुनी

जुस्तुजू-ए-नशात-ए-मुबहम क्या

फ़ानी बदायुनी

एक मुद्दत से सर-ए-बाम वो आया भी नहीं

फ़ैज़ुल हसन

हवा के वास्ते इक काम छोड़ आया हूँ

एजाज़ रहमानी

ज़रा भी शोर मौजों का नहीं है

दिवाकर राही

रिश्वत-ख़ोर सरकारी मुलाज़मीन

दिलावर फ़िगार

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