ब्रह्म Poetry (page 3)

आवाज़-ए-आदम

साहिर लुधियानवी

दिल पे गर चोट न लगती तो न इशरत थी न ग़म

सहाब क़ज़लबाश

ज़ुल्फ़-ए-बरहम की जब से शनासा हुई

साग़र सिद्दीक़ी

ख़ुश्क होंटों की अना माइल-ए-साग़र क्यूँ है

सईद आरिफ़ी

उदास उदास सर-ए-साग़र-ओ-सुबू भी मैं

सादिक़ नसीम

यगाना बन के हो जाए वो बेगाना तो क्या होगा

सबा अकबराबादी

उस को भी हम से मोहब्बत हो ज़रूरी तो नहीं

सबा अकबराबादी

वो कौन है दुनिया में जिसे ग़म नहीं होता

रियाज़ ख़ैराबादी

रूठे हुए कि अपने ज़रा अब मनाए ज़ुल्फ़

रियाज़ ख़ैराबादी

यूँही गर लुत्फ़ तुम लेते रहोगे ख़ूँ बहाने में

रिफ़अत सेठी

मैं ही नहीं हूँ बरहम उस ज़ुल्फ़-ए-कज-अदा से

रज़ा अज़ीमाबादी

तुझ पे खुल जाए कि क्या मेहर को शबनम से मिला

रविश सिद्दीक़ी

शिकस्त-ए-रंग-ए-तमन्ना को अर्ज़-ए-हाल कहूँ

रविश सिद्दीक़ी

पी के कर लेता हूँ तौबा जब से ये दस्तूर है

रसा रामपुरी

मिट्टी जब तक नम रहती है

रसा चुग़ताई

यक़ीनन है कोई माह-ए-मुनव्वर पीछे चिलमन के

रंजूर अज़ीमाबादी

ये घनी छाँव ये ठंडक ये दिल-ओ-जाँ का सुकूँ

राम कृष्ण मुज़्तर

हम ने ऐ दोस्त रिफ़ाक़त से भला क्या पाया

रईस अमरोहवी

अंजाम-ए-वफ़ा भी देख लिया अब किस लिए सर ख़म होता है

इक़बाल सुहैल

सीना-कूबी कर चुके ग़म कर चुके

इमदाद अली बहर

सीना-कूबी कर चुके ग़म कर चुके

इमदाद अली बहर

हम-ज़ाद है ग़म अपना शादाँ किसे कहते हैं

इमदाद अली बहर

बुतो ख़ुदा पे न रक्खो मोआ'मला दिल का

इमदाद अली बहर

छलकती आए कि अपनी तलब से भी कम आए

इब्न-ए-सफ़ी

हमें तुम पे गुमान-ए-वहशत था हम लोगों को रुस्वा किया तुम ने

इब्न-ए-इंशा

वो दिल जो था किसी के ग़म का महरम हो गया रुस्वा

हुरमतुल इकराम

क्या काम उन्हें पुर्सिश-ए-अरबाब-ए-वफ़ा से

हसरत मोहानी

ख़ुशी गर है तो क्या मातम नहीं है

हंस राज सचदेव 'हज़ीं'

ख़ल्वत-ए-जाँ में तिरा दर्द बसाना चाहे

हनीफ़ अख़गर

इस तरह अहद-ए-तमन्ना को गुज़ारे जाइए

हनीफ़ अख़गर

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