ब्रह्म Poetry (page 1)

दस्तूर साज़ी की कोशिश

रज़ा नक़वी वाही

दिसम्बर की आवाज़

बलराज कोमल

बात बह जाने की सुन कर अश्क बरहम हो गए

आता है नज़र अंजाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है

ज़ुल्फ़िक़ार अली बुख़ारी

देखें आईने के मानिंद सहें ग़म की तरह

ज़िया जालंधरी

हुस्न है मोहब्बत है मौसम-ए-बहाराँ है

ज़िया फ़तेहाबादी

रात अजब आसेब-ज़दा सा मौसम था

ज़ेहरा निगाह

जाग के मेरे साथ समुंदर रातें करता है

ज़ेब ग़ौरी

तिरी चश्म-ए-तरब को देखना पड़ता है पुर-नम भी

ज़हीर काश्मीरी

ख़ुश-गुमाँ हर आसरा बे-आसरा साबित हुआ

ज़फ़र मुरादाबादी

ये जो तेरी आँखों में मा'नी-ए-वफ़ा सा है

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

इसी पे शहर की सारी हवाएँ बरहम थीं

यूसुफ़ हसन

उसी हरीफ़ की ग़ारत-गरी का डर भी था

यूसुफ़ हसन

लर्ज़ां तरसाँ मंज़र चुप

याक़ूब यावर

टीन का डिब्बा

वज़ीर आग़ा

कोह-ए-निदा

वज़ीर आग़ा

हमारी ज़िंदगी कहने की हद तक ज़िंदगी है बस

वक़ार मानवी

ख़ुशी दामन-कशाँ है दिल असीर-ए-ग़म है बरसों से

वक़ार मानवी

दीवाने दीवाने ठहरे खेल गए अँगारों से

वामिक़ जौनपुरी

तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

ये किस से आज बरहम हो गई है

तिलोकचंद महरूम

हुए हो किस लिए बरहम अज़ीज़म

तसनीम आबिदी

कभी बहुत है कभी ध्यान तेरा कुछ कम है

तनवीर अंजुम

क़ुसूर इश्क़ में ज़ाहिर है सब हमारा था

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

तुम्हारे हिज्र में रहता है हम को ग़म मियाँ-साहिब

ताबाँ अब्दुल हई

ब-हर-सूरत मोहब्बत का यही अंजाम देखा है

सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली

शिकवा गर कीजे तो होता है गुमाँ तक़्सीर का

सय्यद हामिद

मुस्कुराने से मुद्दआ' क्या है

सय्यद हामिद

दौर-ए-बरहम बे-मअ'नी

सुनील कुमार जश्न

ख़ुशियाँ न छोड़ अपने लिए ग़म तलब न कर

सुलतान रशक

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