ब्रह्म Poetry (page 5)

अजब अख़बार लिक्खा जा रहा है

दिलावर फ़िगार

दिल गया तुम ने लिया हम क्या करें

दाग़ देहलवी

जब से तेरा करम है बंदा-नवाज़

चराग़ हसन हसरत

इस तरह कर गया दिल को मिरे वीराँ कोई

चराग़ हसन हसरत

हम जो मिल बैठें तो यक-जान भी हो सकते हैं

चरख़ चिन्योटी

हम जो मिल बैठें तो यक जान भी हो सकते हैं

चरख़ चिन्योटी

ख़ाक-ए-हिंद

चकबस्त ब्रिज नारायण

फ़साद-ए-दुनिया मिटा चुके हैं हुसूल-ए-हस्ती मिटा चुके हैं

भारतेंदु हरिश्चंद्र

क़फ़स की तीलियों से ले के शाख़-ए-आशियाँ तक है

बेदम शाह वारसी

ख़ाक करती है ब-रंग-ए-चर्ख़-ए-नीली-फ़ाम रक़्स

बयान मेरठी

कुछ तो हस्सास हम ज़ियादा हैं

बासिर सुल्तान काज़मी

जिन दिनों ग़म ज़ियादा होता है

बासिर सुल्तान काज़मी

ज़िंदगी से ज़िंदगी रूठी रही

बक़ा बलूच

क्या कहें क्या हुस्न का आलम रहा

बक़ा बलूच

कावाक

अज़ीज़ क़ैसी

तमाम अंजुमन-ए-वाज़ हो गई बरहम

अज़ीज़ लखनवी

इक ख़्वाब-ए-आतिशीं का वो महरम सा रह गया

अज़ीज़ हामिद मदनी

बीच दिलों में उतरा तो है

अज़ीम कुरेशी

ग़म का ये सलीक़ा भी रह गया है अब हम तक

अज़ीम मुर्तज़ा

कभी नाकामियों का अपनी हम मातम नहीं करते

आज़ाद गुरदासपुरी

उम्र भर चलते रहे हम वक़्त की तलवार पर

आज़ाद गुलाटी

तआरुफ़

असरार-उल-हक़ मजाज़

जुनून-ए-शौक़ अब भी कम नहीं है

असरार-उल-हक़ मजाज़

आशिक़ी जाँ-फ़ज़ा भी होती है

असरार-उल-हक़ मजाज़

मक़्सूद-अली-'दीवाना'

आसिफ़ रज़ा

मेरी सोच लरज़ उट्ठी है देख के प्यार का ये आलम

आरिफ़ अब्दुल मतीन

क्यूँ ख़फ़ा हम से हो ख़ता क्या है

अनवर सहारनपुरी

दौर-ए-हाज़िर हो गया है इस क़दर कम-आश्ना

अनवर साबरी

रुख़ से पर्दा उठा दे ज़रा साक़िया बस अभी रंग-ए-महफ़िल बदल जाएगा

अनवर मिर्ज़ापुरी

गरचे क्या कुछ थे मगर आप को कुछ भी न गिना

अनवर देहलवी

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