हसन Poetry (page 33)

आबला ख़ार-ए-सर-ए-मिज़्गाँ ने फोड़ा साँप का

इमदाद अली बहर

दरिया-ए-हुस्न और भी दो हाथ बढ़ गया

इमाम बख़्श नासिख़

शत्तुल-अरब

इलियास बाबर आवान

हमारा आइना बे-कार हो गया तो फिर!

इलियास बाबर आवान

हर राहत-ए-जाँ लम्हे से उफ़्ताद की ज़िद है

इकराम आज़म

अफ़्सुर्दगी भी हुस्न है ताबिंदगी भी हुस्न

इज्तिबा रिज़वी

ख़िरद को ख़ाना-ए-दिल का निगह-बाँ कर दिया हम ने

इज्तिबा रिज़वी

इक अख़्गर-ए-जमाल फ़रोज़ाँ ब-शक्ल-ए-दिल

इज्तिबा रिज़वी

रौशनी की डोर थामे ज़िंदगी तक आ गए

इफ़्तिख़ार फलक काज़मी

मैं चुप रहा कि वज़ाहत से बात बढ़ जाती

इफ़्तिख़ार आरिफ़

फ़ज़ा में वहशत-ए-संग-ओ-सिनाँ के होते हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

क़ुर्बान जाऊँ हुस्न-ए-क़मर इंतिसाब के

इफ़तिख़ार अहमद फख्र

नाकामी

इफ़्तिख़ार आज़मी

बला नई कोई पालूँ अगर इजाज़त हो

इफ़्फ़त अब्बास

चाँद का हुस्न भी ज़मीन से है

इब्न-ए-सफ़ी

यूँही वाबस्तगी नहीं होती

इब्न-ए-सफ़ी

राह-ए-तलब में कौन किसी का अपने भी बेगाने हैं

इब्न-ए-सफ़ी

ये कौन आया

इब्न-ए-इंशा

पिछले-पहर के सन्नाटे में

इब्न-ए-इंशा

कातिक का चाँद

इब्न-ए-इंशा

दिल-आशोब

इब्न-ए-इंशा

ऐ मिरे सोच-नगर की रानी

इब्न-ए-इंशा

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा

इब्न-ए-इंशा

जंगल जंगल शौक़ से घूमो दश्त की सैर मुदाम करो

इब्न-ए-इंशा

जल्वा-नुमाई बे-परवाई हाँ यही रीत जहाँ की है

इब्न-ए-इंशा

जब दहर के ग़म से अमाँ न मिली हम लोगों ने इश्क़ ईजाद किया

इब्न-ए-इंशा

'इंशा'-जी उठो अब कूच करो इस शहर में जी को लगाना क्या

इब्न-ए-इंशा

दिल किस के तसव्वुर में जाने रातों को परेशाँ होता है

इब्न-ए-इंशा

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

इब्न-ए-इंशा

अर्श के तारे तोड़ के लाएँ काविश लोग हज़ार करें

इब्न-ए-इंशा

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