हसन Poetry (page 6)

वहीं जी उठते हैं मुर्दे ये क्या ठोकर से छूना है

वलीउल्लाह मुहिब

ख़ाना-ए-दिल का जो तवाइफ़ है

वलीउल्लाह मुहिब

हर आन यास बढ़नी हर दम उमीद घटनी

वलीउल्लाह मुहिब

बुलबुल बजाए अपने तुझे हम-नवा से बहस

वलीउल्लाह मुहिब

कहा जो मैं ने गया ख़त से हाए तेरा हुस्न

वली उज़लत

इश्क़ गोरे हुस्न का आशिक़ के दिल को दे जला

वली उज़लत

तिरे लब-बिन है दिल में शोला-ज़न मुल जिस को कहते हैं

वली उज़लत

मिरे नज़'अ को मत उस से कहो हुआ सो हुआ

वली उज़लत

मग़्ज़-ए-बहार इस बरस उस बिन बचा न था

वली उज़लत

जिन दिनों हम उस शब-ए-हज़ के सियह-कारों में थे

वली उज़लत

ग़ुंचा-ए-दिल मिरा खा कर गुल-ए-ख़ंदाँ मेरा

वली उज़लत

हर ज़र्रा उस की चश्म में लबरेज़-ए-नूर है

वली मोहम्मद वली

वो नाज़नीं अदा में एजाज़ है सरापा

वली मोहम्मद वली

तुझ लब की सिफ़त लाल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा

वली मोहम्मद वली

तिरा मजनूँ हूँ सहरा की क़सम है

वली मोहम्मद वली

मुश्ताक़ हैं उश्शाक़ तिरी बाँकी अदा के

वली मोहम्मद वली

कमर उस दिलरुबा की दिलरुबा है

वली मोहम्मद वली

दिल हुआ है मिरा ख़राब-ए-सुख़न

वली मोहम्मद वली

देखना हर सुब्ह तुझ रुख़्सार का

वली मोहम्मद वली

भड़के है दिल की आतिश तुझ नेह की हवा सूँ

वली मोहम्मद वली

आज सरसब्ज़ कोह ओ सहरा है

वली मोहम्मद वली

मत समझना कि सिर्फ़ तू है यहाँ

वाजिद अमीर

पड़ा है पाँव में अब सिलसिला मोहब्बत का

वाजिद अली शाह अख़्तर

दस्तार-ए-फ़क़ीराना इक ताज से अफ़्ज़ूँ है

वाजिद अली शाह अख़्तर

क़स्में वा'दे रह जाते हैं

वजीह सानी

किस तरह हुस्न-ए-ज़बाँ की हो तरक़्क़ी 'वहशत'

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

दोनों ने बढ़ाई रौनक़-ए-हुस्न

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

ज़ब्त की कोशिश है जान-ए-ना-तवाँ मुश्किल में है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तीर-ए-नज़र ने ज़ुल्म को एहसाँ बना दिया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

मुरव्वत का पास और वफ़ा का लिहाज़

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

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