चाक Poetry (page 17)

ज़मीं की ख़ाक तो अफ़्लाक से ज़ियादा है

अज़ीम हैदर सय्यद

जगह फूलों की रखते हैं घना साया बनाते हैं

अज़हर अदीब

नीम-शब आतिश-ए-फ़रियाद-ए-असीराँ रौशन

अज़ीम मुर्तज़ा

कुछ भी हो मिरा हाल नुमायाँ तो नहीं है

अज़ीम मुर्तज़ा

अफ़्साना-ए-हयात-ए-परेशाँ के साथ साथ

अज़ीम मुर्तज़ा

ख़्वाहिशें दुनिया की बार-ए-दोश-ओ-गर्दन हो गईं

औज लखनवी

इस दश्त नवर्दी में जीना बहुत आसाँ था

अतीक़ुल्लाह

माना कि सितारे सर-ए-अफ़्लाक बहुत हैं

अताउर्रहमान जमील

लखनऊ

असरार-उल-हक़ मजाज़

इशरत-ए-तन्हाई

असरार-उल-हक़ मजाज़

आओ अब मिल के गुलिस्ताँ को गुल्सिताँ कर दें

असरार-उल-हक़ मजाज़

कैसे रफ़ू हों चाक-ए-गरेबाँ मैं भी सोचूँ तू भी सोच

असरारुल हक़ असरार

किया गर्दिशों के हवाले उसे चाक पर रख दिया

असलम महमूद

मौत का इंतिज़ार सफ़ेद चाक से

असलम इमादी

ख़ुद अपनी चाल से ना-आश्ना रहे है कोई

असलम इमादी

कभी ऐसा तमव्वुज तुम ने देखा है

असलम अंसारी

ऐ ज़मिस्ताँ की हवा तेज़ न चल

असलम अंसारी

वक़्त बे-वक़्त ये पोशाक मिरी ताक में है

आसिम वास्ती

गुज़र चुका है जो लम्हा वो इर्तिक़ा में है

आसिम वास्ती

भूल कर तू सारे ग़म अपने चमन में रक़्स कर

अासिफ़ अंजुम

हरगिज़ मिरा वहशी न हुआ राम किसी का

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

दिल धड़कता है कि तू यार है सौदाई का

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

डरता हूँ मोहब्बत में मिरा नाम न होवे

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

अगर आशिक़ कोई पैदा न होता

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

नेकी बदी की अब कोई मीज़ान ही नहीं

अशोक साहनी

आ जाओ अब तो ज़ुल्फ़ परेशाँ किए हुए

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन

ऐ जुनूँ उस की कहानी भी सुनाऊँगा तुझे

अशफ़ाक़ नासिर

रंज जो दीदा-ए-नमनाक में देखा गया है

अशफ़ाक़ नासिर

हमेशा तंग रहा मुझ पे ज़िंदगी का लिबास

असग़र मेहदी होश

मस्ती में फ़रोग़-ए-रुख़-ए-जानाँ नहीं देखा

असग़र गोंडवी

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