चाक Poetry (page 22)

ये तबीअत है तो ख़ुद आज़ार बन जाएँगे हम

अहमद फ़राज़

ये शहर सेहर-ज़दा है सदा किसी की नहीं

अहमद फ़राज़

था अबस तर्क-ए-तअल्लुक़ का इरादा यूँ भी

अहमद फ़राज़

सू-ए-फ़लक न जानिब-ए-महताब देखना

अहमद फ़राज़

मिसाल-ए-दस्त-ए-ज़ुलेख़ा तपाक चाहता है

अहमद फ़राज़

ग़नीम से भी अदावत में हद नहीं माँगी

अहमद फ़राज़

फ़ित्ना उठा तो रज़्म-गह-ए-ख़ाक से उठा

अहमद अज़ीम

ऐ मियाँ कौन ये कहता है मोहब्बत की है

अहमद अता

उड़ कर सुराग़-ए-कूचा-ए-दिलबर लगाइए

आग़ा हज्जू शरफ़

रंग जिन के मिट गए हैं उन में यार आने को है

आग़ा हज्जू शरफ़

परी-पैकर जो मुझ वहशी का पैराहन बनाते हैं

आग़ा हज्जू शरफ़

दरपेश अजल है गंज-ए-शहीदाँ ख़रिदिए

आग़ा हज्जू शरफ़

तेरे जल्वों को रू-ब-रू कर के

अफ़ज़ल इलाहाबादी

आजिज़ हूँ तिरे हाथ से क्या काम करूँ मैं

आफ़ताब शाह आलम सानी

कुछ भी नहीं जो याद-ए-बुतान-ए-हसीं नहीं

अफ़सर इलाहाबादी

हश्र की सुब्ह दरख़्शाँ हो मक़ाम-ए-महमूद

आदिल मंसूरी

तुम जो सियाने हो गुन वाले हो

अदा जाफ़री

जब दिल की रहगुज़र पे तिरा नक़्श-ए-पा न था

अदा जाफ़री

आगे हरीम-ए-ग़म से कोई रास्ता न था

अदा जाफ़री

जाने क्या सूरत-ए-हालात रक़म थी उस में

अबुल हसनात हक़्क़ी

शब को हर रंग में सैलाब तुम्हारा देखें

अबुल हसनात हक़्क़ी

हसरत-ए-दीद रही दीद का ख़्वाहाँ हो कर

अबु मोहम्मद वासिल

किया है चाक दिल तेग़-ए-तग़ाफ़ुल सीं तुझ अँखियों नीं

आबरू शाह मुबारक

क्या जानिए क्या है हद-ए-इदराक से आगे

अबरार अहमद

क्यूँके करे न शहर को रो रो उजाड़ चश्म

अब्दुल वहाब यकरू

गरेबाँ चाक है हाथों में ज़ालिम तेरा दामाँ है

अब्दुल रहमान एहसान देहलवी

कितनी महबूब थी ज़िंदगी कुछ नहीं कुछ नहीं

अब्दुल हमीद

लम्हा-ए-तख़्लीक़ बख़्शा उस ने मुझ को भीक में

अब्दुल अहद साज़

अबस है राज़ को पाने की जुस्तुजू क्या है

अब्दुल अहद साज़

तिलिस्म-ए-ख़्वाब से मेरा बदन पत्थर नहीं होता

अब्बास ताबिश

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