चाक Poetry (page 3)

मौसम-ए-गुल में हैं दीवानों के बाज़ार कई

वली उज़लत

कर रहे हैं मुझ से तुझ-बिन दीदा-ए-नमनाक जंग

वली उज़लत

जो आशिक़ हो उसे सहरा में चल जाने से क्या निस्बत

वली उज़लत

ग़ुंचा-ए-दिल मिरा खा कर गुल-ए-ख़ंदाँ मेरा

वली उज़लत

बहार आई जुनूँ लेगा हमारा इम्तिहाँ देखें

वली उज़लत

बहार आई ब-तंग आया दिल-ए-वहशत-पनाह अपना

वली उज़लत

बहार आधी गुज़र गई हाए हम क़ैदी हैं ज़िंदाँ के

वली उज़लत

ऐ नासेह चश्म-ए-तर से मत कर आँसू पाक रहने दे

वली उज़लत

अबस तोड़ा मिरा दिल नाज़ सिखलाने के काम आता

वली उज़लत

जब सनम कूँ ख़याल-ए-बाग़ हुआ

वली मोहम्मद वली

हुए हैं राम पीतम के नयन आहिस्ता-आहिस्ता

वली मोहम्मद वली

सब बिछड़े साथी मिल जाएँ मुरझाएँ चेहरे खिल जाएँ

वाली आसी

जी का जंजाल है इश्क़ मियाँ क़िस्सा ये तमाम करो 'वाली'

वाली आसी

चाक चाक अपना गरेबाँ न हुआ था सो हुआ

वाजिद अली शाह अख़्तर

यही है इश्क़ की मुश्किल तो मुश्किल आसाँ है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

गरेबाँ से तिरे किस ने निकाला सुब्ह-ए-ख़ंदाँ को

वहीदुद्दीन सलीम

गरेबाँ से तिरे किस ने निकाला सुब्ह-ए-ख़ंदाँ को

वहीदुद्दीन सलीम

लिपटी हुई फिरती है नसीम उन की क़बा से

वहीद अख़्तर

रहने दे तकलीफ़-ए-तवज्जोह दिल को है आराम बहुत

उनवान चिश्ती

इस महफ़िल में मैं भी क्या बेबाक हुआ

उमैर मंज़र

जब इंसान को अपना कुछ इदराक हुआ

उमैर मंज़र

शिद्दत-ए-इज़हार-ए-मज़मूँ से है घबराई हुई

तुफ़ैल बिस्मिल

दिल की बात न मानी होती इश्क़ किया क्यूँ पीरी में

तौसीफ़ तबस्सुम

नाम लोगे जो याँ से जाने का

मीर तस्कीन देहलवी

क्या क्या मज़े से रात की अहद-ए-शबाब में

मीर तस्कीन देहलवी

गर मेरे बैठने से वो आज़ार खींचते

मीर तस्कीन देहलवी

हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ

तारिक़ क़मर

पोशीदा किसी ज़ात में पहले भी कहीं था

तारिक़ नईम

मिरी निगाह किसी ज़ाविए पे ठहरे भी

तारिक़ नईम

जीना क्या है पिछ्ला क़र्ज़ उतार रहा हूँ

तारिक़ नईम

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