चाक Poetry (page 5)
निज़ाम-ए-शम्स-ओ-क़मर कितने दस्त-ए-ख़ाक में हैं
सुलैमान अरीब
इन दिनों तेज़ बहुत तेज़ है धारा मेरा
सुहैल अख़्तर
बंद हो जाए मिरी आँख अगर
सूफ़ी तबस्सुम
ये आज आए हैं किस अजनबी से देस में हम
सूफ़ी तबस्सुम
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल-ए-सोगवार हो न सका
सूफ़ी तबस्सुम
आँसू हैं कफ़न-पोश सितारे हैं कफ़न-रंग
सिराज लखनवी
ऐ शोख़ गुलिस्ताँ मैं नहीं ये गुल-ए-रंगीं
सिराज औरंगाबादी
तेरी भँवों की तेग़ के जो रू-ब-रू हुआ
सिराज औरंगाबादी
कैफ़ जो रूह पे तारी है तुझे क्या मालूम
सिकंदर अली वज्द
मिरे चेहरे से ग़म आँखों से हैरानी न जाएगी
सिद्दीक़ मुजीबी
अजब पागल है दिल कार-ए-जहाँ बानी में रहता है
सिद्दीक़ मुजीबी
चलते चलते चले आए हैं परेशानी में
सिद्दीक़ शाहिद
ख़ुदाया हिन्द का रौशन चराग़-ए-आरज़ू कर दे
श्याम सुंदर लाल बर्क़
दिल फड़क जाएगा वो शोख़ जो ख़ंदाँ होगा
शऊर बलगिरामी
मैं ने सिर्फ़ अपने नशेमन को सजाया साल भर
शुजा ख़ावर
सुरमई रातों से छिनवा कर सहर की रौनक़ें
शोरिश काश्मीरी
कुछ हश्र से कम गर्मी-ए-बाज़ार नहीं है
शोहरत बुख़ारी
न करता ज़ब्त मैं नाला तो फिर ऐसा धुआँ होता
ज़ौक़
मज़ा था हम को जो लैला से दू-ब-दू करते
ज़ौक़
कल गए थे तुम जिसे बीमार-ए-हिज्राँ छोड़ कर
ज़ौक़
जुदा हों यार से हम और न हो रक़ीब जुदा
ज़ौक़
बादाम दो जो भेजे हैं बटवे में डाल कर
ज़ौक़
बे-इंतिहा होना है तो इस ख़ाक के हो जाओ
शहपर रसूल
कौन से दिन तिरी याद ऐ बुत-ए-सफ़्फ़ाक नहीं
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
दस्त-ए-अदू से शब जो वो साग़र लिया किए
मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता
वही न मिलने का ग़म और वही गिला होगा
शीन काफ़ निज़ाम
मंज़िल है कठिन कम ज़ाद-ए-सफ़र मालूम नहीं क्या होना है
शौक़ बहराइची
किया जो ए'तिबार उन पर मरीज़-ए-शाम-ए-हिज्राँ ने
शौक़ बहराइची
जो मस्त-ए-जाम-ए-बादा-ए-इरफ़ाँ न हो सका
शौक़ बहराइची
बहुत कम बोलना अब कर दिया है
शम्स तबरेज़ी
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