चाक Poetry (page 7)

चश्म में कब अश्क भर लाते हैं हम

शाह नसीर

सदियों तुम्हारी याद में शमएँ जलाएँगे

शफ़क़त तनवीर मिर्ज़ा

कली पर मुस्कुराहट आज भी मालूम होती है

शफ़ीक़ जौनपुरी

जो मुर्ग़-ए-क़िबला-नुमा बन के आशियाँ से चले

शाद लखनवी

दम-ब-ख़ुद हम तो डरे बैठे हैं

शाद लखनवी

नज़्म

शबनम अशाई

इक तबस्सुम से हम ने रोक लिए

शायर लखनवी

मोहब्बत ख़ार-ए-दामन बन के रुस्वा हो गई आख़िर

शानुल हक़ हक़्क़ी

तारे जो आसमाँ से गिरे ख़ाक हो गए

शाद आरफ़ी

मेरी रिफ़अत पर जो हैराँ है तो हैरानी नहीं

सीमाब अकबराबादी

अंजाम हर इक शय का ब-जुज़ ख़ाक नहीं है

सीमाब अकबराबादी

फूलों को शर्मसार किया है कभी कभी

सय्यद जहीरुद्दीन ज़हीर

तो क्या

सय्यद अयाज़ महमूद

फ़िराक़-ए-ख़ुल्द से गंदुम है सीना-चाक अब तक

मोहम्मद रफ़ी सौदा

किस के हैं ज़ेर-ए-ज़मीं दीदा-ए-नम-नाक हनूज़

मोहम्मद रफ़ी सौदा

कहते हैं लोग यार का अबरू फड़क गया

मोहम्मद रफ़ी सौदा

गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी

मोहम्मद रफ़ी सौदा

दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा

मोहम्मद रफ़ी सौदा

ऐ आह तिरी क़द्र असर ने तो न जानी

मोहम्मद रफ़ी सौदा

हर एक लम्हा-ए-मौजूद इंतिज़ार में था

सऊद उस्मानी

क़िन्दील-ए-मह-ओ-मेहर का अफ़्लाक पे होना

सरवत हुसैन

ऐ शैख़ अपना जुब्बा-ए-अक़्दस सँभालिये

सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी

मैं वो हूँ जिस पे अब्र का साया पड़ा नहीं

साक़ी फ़ारुक़ी

गई नहीं तिरे ज़ुल्म-ओ-सितम की ख़ू अब तक

संजय मिश्रा शौक़

ख़ाक-बस्ता हैं तह-ए-ख़ाक से बाहर न हुए

सलीम शुजाअ अंसारी

ज़मीं को सज्दा किया ख़ूँ से बा-वज़ू हो कर

सलीम शाहिद

वुसअत है वही तंगी-अफ़्लाक वही है

सलीम कौसर

फ़स्ल-ए-जुनूँ में दामन-ओ-दिल चाक भी नहीं

सलीम फ़राज़

उस सादा-दिल से कुछ मुझे 'बाक़र' गिला न था

सज्जाद बाक़र रिज़वी

पूछो मुझे ऐ हम-नफ़साँ कौन हूँ क्या हूँ

सज्जाद बाक़र रिज़वी

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