दीपक Poetry (page 33)

मैं सोचता तो हूँ लेकिन ये बात किस से कहूँ

अशफ़ाक़ अंजुम

हम आइने में तिरा अक्स देखने के लिए

अशफ़ाक़ नासिर

अगर ख़ुशी में तुझे गुनगुनाते लगते हैं

अशफ़ाक़ नासिर

लगा हो दिल तो ख़यालात कब बदलते हैं

अशफ़ाक़ आमिर

तिरे महल में हज़ारों चराग़ जलते हैं

असग़र वेलोरी

तुम दूर हो तो प्यार का मौसम न आएगा

असद भोपाली

सब इक चराग़ के परवाने होना चाहते हैं

असअ'द बदायुनी

ये लोग ख़्वाब बहुत कर्बला के देखते हैं

असअ'द बदायुनी

ये धूप छाँव के असरार क्या बताते हैं

असअ'द बदायुनी

यही नहीं कि मिरा घर बदलता जाता है

असअ'द बदायुनी

सुख़न-वरी का बहाना बनाता रहता हूँ

असअ'द बदायुनी

सब इक चराग़ के परवाने होना चाहते हैं

असअ'द बदायुनी

मुझे भी वहशत-ए-सहरा पुकार मैं भी हूँ

असअ'द बदायुनी

मिरी अना मिरे दुश्मन को ताज़ियाना है

असअ'द बदायुनी

मिरे शजर तुझे मौसम नया बनाते रहें

असअ'द बदायुनी

किसी गुमान-ओ-यक़ीं की हद में वो शोख़-ए-पर्दा-नशीं नहीं है

आरज़ू लखनवी

जितना था सरगर्म-ए-कार उतना ही दिल नाकाम था

आरज़ू लखनवी

दिल मुकद्दर है आईना-रू का

आरज़ू लखनवी

देखें महशर में उन से क्या ठहरे

आरज़ू लखनवी

कारवाँ तीरा-शब में चलते हैं

अर्शी भोपाली

जो बुझ गए थे चराग़ फिर से जला रहा है

अरशद नईम

लहू के साथ तबीअत में सनसनाती फिरे

अरशद मलिक

ऐ दिल तिरे तुफ़ैल जो मुझ पर सितम हुए

अरशद कमाल

किस की तनवीर से जल उठ्ठे बसीरत के चराग़

अरशद जमाल 'सारिम'

प्यास हर ज़र्रा-ए-सहरा की बुझाई गई है

अरशद जमाल 'सारिम'

जुड़े हुए हैं परी-ख़ाने मेरे काग़ज़ से

अरशद जमाल 'सारिम'

बना कर तिल रुख़-ए-रौशन पर दो शोख़ी से से कहते हैं

अरशद अली ख़ान क़लक़

जुनूँ बरसाए पत्थर आसमाँ ने मज़रा-ए-जाँ पर

अरशद अली ख़ान क़लक़

इश्क़ में तेरे जान-ए-ज़ार हैफ़ है मुफ़्त में चली

अरशद अली ख़ान क़लक़

इक रौशनी सी दिल में थी वो भी नहीं रही

अर्श मलसियानी

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