सब इक चराग़ के परवाने होना चाहते हैं
अजीब लोग हैं दीवाने होना चाहते हैं
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Rahat Indori
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Habib Jalib
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मुझे भी वहशत-ए-सहरा पुकार मैं भी हूँ
पुराने घर की शिकस्ता छतों से उकता कर
हम अहल-ए-ख़ौफ़
अभी ज़मीन को सौदा बहुत सरों का है
गाँव की आँख से बस्ती की नज़र से देखा
चमन वही कि जहाँ पर लबों के फूल खिलें
सैल-ए-गिर्या का सीने से रिश्ता बहुत
सच बोल के बचने की रिवायत नहीं कोई
रास्ता कोई सफ़र कोई मसाफ़त कोई
पोशीदा क्यूँ है तूर पे जल्वा दिखा के देख
वो सारी बातें मैं अहबाब ही से कहता हूँ