चमन वही कि जहाँ पर लबों के फूल खिलें
बदन वही कि जहाँ रात हो गवारा भी
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हम अहल-ए-ख़ौफ़
मोहब्बतें भी उसी आदमी का हिस्सा थीं
वक़्त इक दरिया है दरिया सब बहा ले जाएगा
परिंद पेड़ से परवाज़ करते जाते हैं
रास्ता कोई सफ़र कोई मसाफ़त कोई
मिरे शजर तुझे मौसम नया बनाते रहें
कहते हैं लोग शहर तो ये भी ख़ुदा का है
जिसे न मेरी उदासी का कुछ ख़याल आया
पोशीदा क्यूँ है तूर पे जल्वा दिखा के देख
मिरे लोग ख़ेमा-ए-सब्र में मिरे शहर गर्द-ए-मलाल में
हवा हवस के इलाक़े दिखा रही है मुझे
मुझे भी वहशत-ए-सहरा पुकार मैं भी हूँ