बिछड़ के तुझ से किसी दूसरे पे मरना है
ये तजरबा भी इसी ज़िंदगी में करना है
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कोई हमदम नहीं दुनिया में लेकिन
बड़े नादान थे हम रेत को आब-ए-रवाँ समझे
सब इक चराग़ के परवाने होना चाहते हैं
शाख़ से टूट के पत्ते ने ये दिल में सोचा
पुराने घर की शिकस्ता छतों से उकता कर
वक़्त इक दरिया है दरिया सब बहा ले जाएगा
ख़ुशी भी अब सरापा ग़म लगे है
हवा के अपने इलाक़े हवस के अपने मक़ाम
पोशीदा क्यूँ है तूर पे जल्वा दिखा के देख
यही नहीं कि मिरा घर बदलता जाता है
तल्ख़ियाँ