कोई हमदम नहीं दुनिया में लेकिन
जिसे देखो वही हमदम लगे है
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हम अहल-ए-ख़ौफ़
सुख़न-वरी का बहाना बनाता रहता हूँ
वक़्त इक दरिया है दरिया सब बहा ले जाएगा
ये लोग ख़्वाब बहुत कर्बला के देखते हैं
जम गई धूल मुलाक़ात के आईनों पर
रास्ता कोई सफ़र कोई मसाफ़त कोई
बहुत से लोगों को मैं भी ग़लत समझता हूँ
सच बोल के बचने की रिवायत नहीं कोई
तल्ख़ियाँ
जिसे पढ़ते तो याद आता था तेरा फूल सा चेहरा
ये जो शाम ज़र-निगार है