किस की तनवीर से जल उठ्ठे बसीरत के चराग़
किस की तस्वीर ये आँखों से लगाई गई है
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पलट कर देखने का मुझ में यारा ही नहीं था
इसी बाइस मैं अपना निस्फ़ रखता हूँ अँधेरे में
बस कि इक लम्स की उम्मीद पे वारे हुए हैं
किश्त-ए-एहसास में थोड़ा सा मिला लेंगे तुझे
क्या कहूँ कितना फ़ुज़ूँ है तेरे दीवाने का दुख
दिखाती है जो ये दुनिया वो बैठा देखता हूँ मैं
नित-नए नक़्श से बातिन को सजाता हुआ मैं
दो-चार सितारे ही मिरी आँख में धर जा
कहाँ कहाँ से सुनाऊँ तुम्हें फ़साना-ए-शब
ज़िंदगी तू भी हमें वैसे ही इक रोज़ गुज़ार
बे-अमाँ हूँ इन दिनों मैं दर-ब-दर फिरता हूँ मैं
सुपुर्द-ए-आब यूँ ही तो नहीं करता हूँ ख़ाक अपनी