दीपक Poetry (page 8)

इक सदमा दर्द-ए-दिल से मिरी जान पर तो है

ज़ौक़

कब चला जाता है 'शहपर' कोई आ के सामने

शहपर रसूल

मौज-ए-हवा से फूलों के चेहरे उतर गए

शीन काफ़ निज़ाम

आँखों में रात ख़्वाब का ख़ंजर उतर गया

शीन काफ़ निज़ाम

संग-आबाद की एक दुकाँ

शाज़ तमकनत

आबला-पाई से वीराना महक जाता है

शाज़ तमकनत

राह-ए-वफ़ा में साया-ए-दीवार-ओ-दर भी है

शायान क़ुरैशी

अबरू है का'बा आज से ये नाम रख दिया

शौक़ क़िदवाई

कुछ तो देखें असर चराग़ चले

शौक़ माहरी

ज़िंदगी का सफ़र ख़त्म होता रहा तुम मुझे दम-ब-दम याद आते रहे

शौकत परदेसी

हसरतें बन कर निगाहों से बरस जाएँगे हम

शौकत परदेसी

सब आसान हुआ जाता है

शारिक़ कैफ़ी

मेज़ों पे सजा के अयाग़ धरो

शरीक़ अदील

पस्पाई

शरीफ़ कुंजाही

पहुँच गया था वो कुछ इतना रौशनी के क़रीब

शारिब मौरान्वी

सुर्ख़ सीधा सख़्त नीला दूर ऊँचा आसमाँ

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

सजे हुए बाम-ओ-दर से आगे की सोचता हूँ

शमशीर हैदर

मिली जो दिल को ख़ुशी तो ख़ुशी से घबराए

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

तू याद आया और मिरी आँख भर गई

शमीम तारिक़

बुझा है दिल तो न समझो कि बुझ गया ग़म भी

शमीम करहानी

उन का वादा बदल गया है

शमीम करहानी

क़ैद-ए-ग़म-ए-हयात से हम को छुड़ा लिया

शमीम करहानी

हमीं थे ऐसे सर-फिरे हमीं थे ऐसे मनचले

शमीम करहानी

गुलों पे साया-ए-ग़म-हा-ए-रोज़गार मिले

शमीम करहानी

गली गली है अंधेरा तो मेरे साथ चलो

शमीम करहानी

फ़ासला तो है मगर कोई फ़ासला नहीं

शमीम करहानी

चमन चमन जो ये सुब्ह-ए-बहार की ज़ौ है

शमीम करहानी

आना उसी का बज़्म से जाना उसी का है

शमीम हनफ़ी

मुझ को तिरे सुलूक से कोई गिला न था

शकील शम्सी

दिल की कहानियों को नया मोड़ क्यूँ दिया

शकील शम्सी

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