दीपक Poetry (page 6)

दौर-ए-तूफ़ाँ में भी जी लेते हैं जीने वाले

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

दाद भी फ़ित्ना-ए-बेदाद भी क़ातिल की तरफ़

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

कोई भी नक़्श सलामत नहीं है चेहरे का

ताब असलम

उन्स है ख़ाना-ए-सय्याद से गुलशन कैसा

तअशशुक़ लखनवी

दिल जल के रह गए ज़क़न-ए-रश्क-ए-माह पर

तअशशुक़ लखनवी

मंज़िल मिले न कोई भी रस्ता दिखाई दे

सय्यदा नफ़ीस बानो शम्अ

हम अगर दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते

सय्यद ज़मीर जाफ़री

अगर हम दश्त-ए-जुनूँ में न ग़ज़ल-ख़्वाँ होते

सय्यद ज़मीर जाफ़री

उन की देरीना मुलाक़ात जो याद आती है

सय्यद मुबीन अल्वी ख़ैराबादी

दौर-ए-मय है मगर सुरूर नहीं

सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली

मैं ने माना कि मुलाक़ात नहीं हो सकती

सय्यद मोहम्मद असकरी आरिफ़

किसी ख़याल की रौ में था मुस्कुराते हुए

सय्यद अमीन अशरफ़

गर्दिश-ए-आब-ओ-हवा जानती है

सय्यद अमीन अशरफ़

अजीब शय है तरह-दार भी तमन्ना भी

सय्यद अमीन अशरफ़

वजूद मिट गया परवानों के सँभलने तक

सालेह नदीम

शिद्दत-ए-कर्ब से कराह उठा

सालेह नदीम

जिन के अंदर चराग़ जलते हैं

सूर्यभानु गुप्त

सती

सुरूर जहानाबादी

न किसी को फ़िक्र-ए-मंज़िल न कहीं सुराग़-ए-जादा

सुरूर बाराबंकवी

हर एक सम्त इशारे थे और रस्ता भी

सुनील आफ़ताब

साँस उखड़ी हुई सूखे हुए लब कुछ भी नहीं

सुल्तान अख़्तर

कोई भी शहर में खुल कर न बग़ल-गीर हुआ

सुल्तान अख़्तर

आज भी हाथ पे है तेरे पसीने की तरी

सुलैमान अरीब

वफ़ा का इम्तिहाँ है जान-आे-तन की आज़माइश है

सुलैमान आसिफ़

नवाह-ए-जाँ में कहीं अबतरी सी लगती है

सुहैल अहमद ज़ैदी

जब शाम बढ़ी रात का चाक़ू निकल आया

सुहैल अहमद ज़ैदी

तुम आसमाँ की तरफ़ न देखो

सूफ़ी तबस्सुम

मिटी मिटी हुई यादों के दाग़ क्या जलते?

सूफ़ी तबस्सुम

बढ़ा जो दर्द-ए-जिगर ग़म से दोस्ती कर ली

सुभाष पाठक ज़िया

अब ख़िज़ाँ आए या बहार आए

सोज़ नजीबाबादी

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