दीपक Poetry (page 5)

हर इक के दुख पे जो अहल-ए-क़लम तड़पता था

तिफ़्ल दारा

जैसे वीरान हवेली में हों ख़ामोश चराग़

तौक़ीर तक़ी

कोई तासीर तो है इस की नवा में ऐसी

तौक़ीर तक़ी

ख़िज़ाँ-नसीबों पे बैन करती हुई हवाएँ

तारिक़ क़मर

हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ

तारिक़ क़मर

वो मेरे ख़्वाब की ताबीर तो बताए मुझे

तारिक़ क़मर

नज़र नज़र से मिला कर कलाम कर आया

तारिक़ क़मर

न तुम मिले थे तो दुनिया चराग़-पा भी न थी

तारिक़ क़मर

बड़ी हवेली के तक़्सीम जब उजाले हुए

तारिक़ क़मर

तिरे ख़याल की लौ ही सफ़र में काम आई

तारिक़ नईम

अजीब दर्द का रिश्ता था सब के सब रोए

तारिक़ नईम

अपने दुखों का हम ने तमाशा नहीं किया

तारिक़ मतीन

है किस का इंतिज़ार खुला घर का दर भी है

तारिक़ बट

बुझे तो दिल भी थे पर अब दिमाग़ बुझने लगे

तारिक़ बट

दिल के भूले हुए अफ़्साने बहुत याद आए

तनवीर अहमद अल्वी

जिहत को बे-जिहती के हुनर ने छीन लिया

तालिब जोहरी

पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा

तहज़ीब हाफ़ी

न नींद और न ख़्वाबों से आँख भरनी है

तहज़ीब हाफ़ी

अजीब ख़्वाब था उस के बदन में काई थी

तहज़ीब हाफ़ी

गोशे बदल बदल के हर इक रात काट दी

ताहिर फ़राज़

नफ़स की ज़द पे हर इक शोला-ए-तमन्ना है

ताबिश देहलवी

हमा-तन गोश इक ज़माना था

ताबिश देहलवी

यादों के साए हैं न उमीदों के हैं चराग़

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

वो रौशनी कि ब-क़ैद-ए-सहर नहीं ऐ दोस्त

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

मिलेगा दर्द तो दरमाँ की आरज़ू होगी

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

कमाल-ए-बे-ख़बरी को ख़बर समझते हैं

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

हुजूम-ए-दर्द का इतना बढ़े असर गुम हो

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

हर सितम लुत्फ़ है दिल ख़ूगर-ए-आज़ार कहाँ

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

हर मोड़ को चराग़-ए-सर-ए-रहगुज़र कहो

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

दिल वो काफ़िर कि सदा ऐश का सामाँ माँगे

ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ

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