दाने Poetry (page 2)

गर्दिश-ए-चश्म है पैमाने में

रशीद लखनवी

मैं खो गया था कोई शय तलाश करते हुए

राकिब मुख़्तार

कुछ परिंदों को तो बस दो चार दाने चाहिएँ

राजेश रेड्डी

कुछ परिंदों को तो बस दो चार दाने चाहिएँ

राजेश रेड्डी

कहीं से कोई हर्फ़-ए-मो'तबर शायद न आए

इफ़्तिख़ार आरिफ़

जान कर कहता है हम से अपने जाने की ख़बर

हसरत अज़ीमाबादी

आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए

हफ़ीज़ जालंधरी

न मिरा ज़ोर न बस अब क्या है

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

हम ने तो बे-शुमार बहाने बनाए हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

किधर क़फ़स था कहाँ हम थे किस तरफ़ ये क़ैद

ग़ुलाम मौला क़लक़

गंदुम की बालियाँ

ग़ज़नफ़र

किस अनमोल पशेमानी की दौलत है इन आँखों में

फ़े सीन एजाज़

ग़म दुनिया के याद जब आएँ उस की याद भी आने दो

फ़े सीन एजाज़

हाथ में अपने अभी तक एक साग़र ही तो है

फ़ातिमा वसीया जायसी

हश्र इक गुज़रा है वीराने पे घर होने तक

दानिश फ़राही

नज़्म

बिमल कृष्ण अश्क

कौन आया रास्ते आईना-ख़ाने हो गए

बशीर बद्र

ख़ाल-ए-लब आफ़त-ए-जाँ था मुझे मालूम न था

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

ख़ाल-ए-लब आफ़त-ए-जाँ था मुझे मालूम न था

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

ख़ाल-ए-लब आफ़त-ए-जाँ था मुझे मालूम न था

बक़ा उल्लाह 'बक़ा'

यकायक अक्स धुँदलाने लगे हैं

बकुल देव

तेरे आने का गुमाँ होता है

अशरफ़ यूसुफ़

हल्का था नदामत से सरमाया इबादत का

आरज़ू लखनवी

कैसी कैसी आयतें मस्तूर हैं नुक़्ते के बीच

अनवर मसूद

कुछ तो नया किया है हवा ने पता करो

अंजुम बाराबंकवी

बम्बई रात समुंदर

अमीक़ हनफ़ी

सूप के दाने कबूतर चुग रहा था और वो

अम्बर बहराईची

हर तरफ़ उस के सुनहरे लफ़्ज़ हैं फैले हुए

अम्बर बहराईची

पास था नाकामी-ए-सय्याद का ऐ हम-सफ़ीर

अल्लामा इक़बाल

अब तलक हक़ नहिं पछाने वाह-वाह

अलीमुल्लाह

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