पास था नाकामी-ए-सय्याद का ऐ हम-सफ़ीर
वर्ना मैं और उड़ के आता एक दाने के लिए
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तुझे किताब से मुमकिन नहीं फ़राग़ कि तू
उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर
कमाल-ए-तर्क नहीं आब-ओ-गिल से महजूरी
ज़िंदगानी की हक़ीक़त कोहकन के दिल से पूछ
हाँ दिखा दे ऐ तसव्वुर फिर वो सुब्ह ओ शाम तू
फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का
अमल से ज़िंदगी बनती है जन्नत भी जहन्नम भी
'अत्तार' हो 'रूमी' हो 'राज़ी' हो 'ग़ज़ाली' हो
मक़ाम-ए-शौक़ तिरे क़ुदसियों के बस का नहीं
फ़रमान-ए-ख़ुदा
जमाल-ए-इश्क़-ओ-मस्ती नय-नवाज़ी
हादसा वो जो अभी पर्दा-ए-अफ़्लाक में है