पुराने हैं ये सितारे फ़लक भी फ़र्सूदा
जहाँ वो चाहिए मुझ को कि हो अभी नौ-ख़ेज़
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ख़िरद ने मुझ को अता की नज़र हकीमाना
ये पयाम दे गई है मुझे बाद-ए-सुब्ह-गाही
तिरा जौहर है नूरी पाक है तू
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
ख़ुदी की जल्वतों में मुस्तफ़ाई
उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर
तिरी दुनिया जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही
ज़ोहद और रिंदी
हज़ार ख़ौफ़ हो लेकिन ज़बाँ हो दिल की रफ़ीक़
अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहीं
ये कौन ग़ज़ल-ख़्वाँ है पुर-सोज़ ओ नशात-अंगेज़
माँ का ख़्वाब