उसे सुब्ह-ए-अज़ल इंकार की जुरअत हुई क्यूँकर
मुझे मालूम क्या वो राज़-दाँ तेरा है या मेरा
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हरम-ए-पाक भी अल्लाह भी क़ुरआन भी एक
कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे
मकतबों में कहीं रानाई-ए-अफ़कार भी है
पुराने हैं ये सितारे फ़लक भी फ़र्सूदा
तस्वीर-ए-दर्द
नहीं इस खुली फ़ज़ा में कोई गोशा-ए-फ़राग़त
दिगर-गूँ है जहाँ तारों की गर्दिश तेज़ है साक़ी
तिरा तन रूह से ना-आश्ना है
ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ
अता अस्लाफ़ का जज़्ब-ए-दरूँ कर
हिन्दुस्तानी बच्चों का क़ौमी गीत
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़