हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
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सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
ये है ख़ुलासा-ए-इल्म-ए-क़लंदरी कि हयात
उक़ाबी रूह जब बेदार होती है जवानों में
अता अस्लाफ़ का जज़्ब-ए-दरूँ कर
ज़लाम-ए-बहर में खो कर सँभल जा
लेनिन
न मोमिन है न मोमिन की अमीरी
फ़ितरत मिरी मानिंद-ए-नसीम-ए-सहरी है
परेशाँ कारोबार-ए-आश्नाई
फ़रिश्ते आदम को जन्नत से रुख़्सत करते हैं
मकतबों में कहीं रानाई-ए-अफ़कार भी है
नशा पिला के गिराना तो सब को आता है