हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी
ख़ुदा करे कि जवानी तिरी रहे बे-दाग़
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वही मेरी कम-नसीबी वही तेरी बे-नियाज़ी
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
ये पयाम दे गई है मुझे बाद-ए-सुब्ह-गाही
आँख जो कुछ देखती है लब पे आ सकता नहीं
हुई न आम जहाँ में कभी हुकूमत-ए-इश्क़
तरीक़-ए-अहल-ए-दुनिया है गिला-शिकवा ज़माने का
ढूँड रहा है फ़रंग ऐश-ए-जहाँ का दवाम
अमीन-ए-राज़ है मर्दान-ए-हूर की दरवेशी
रगों में वो लहू बाक़ी नहीं है
मुझे आह-ओ-फ़ुग़ान-ए-नीम-शब का फिर पयाम आया
ख़ुदी के ज़ोर से दुनिया पे छा जा
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर