फ़ितरत मिरी मानिंद-ए-नसीम-ए-सहरी है
रफ़्तार है मेरी कभी आहिस्ता कभी तेज़
पहनाता हूँ अतलस की क़बा लाला-ओ-गुल को
करता हूँ सर-ए-ख़ार को सोज़न की तरह तेज़
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गुलज़ार-ए-हस्त-ओ-बूद न बेगाना-वार देख
ये हूरयान-ए-फ़रंगी दिल ओ नज़र का हिजाब
उक़ाबी रूह जब बेदार होती है जवानों में
हज़ार ख़ौफ़ हो लेकिन ज़बाँ हो दिल की रफ़ीक़
तुझे याद क्या नहीं है मिरे दिल का वो ज़माना
मानिंद-ए-सहर सेहन-ए-गुलिस्ताँ में क़दम रख
मकतबों में कहीं रानाई-ए-अफ़कार भी है
ज़लाम-ए-बहर में खो कर सँभल जा
फ़रिश्ते आदम को जन्नत से रुख़्सत करते हैं
हुई न आम जहाँ में कभी हुकूमत-ए-इश्क़
तमीज़-ए-ख़ार-ओ-गुल से आश्कारा
कभी तन्हाई-ए-कोह-ओ-दमन इश्क़