कभी तन्हाई-ए-कोह-ओ-दमन इश्क़
कभी सोज़-ओ-सुरूर-ओ-अंजुमन इश्क़
कभी सरमाया-ए-मेहराब-ओ-मिम्बर
कभी मौला-'अली' ख़ैबर-शिकन इश्क़
Javed Akhtar
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Gulzar
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(5099) Peoples Rate This
मक़ाम-ए-शौक़ तिरे क़ुदसियों के बस का नहीं
मुरीद-ए-सादा तो रो रो के हो गया ताइब
हर शय मुसाफ़िर हर चीज़ राही
अजब नहीं कि ख़ुदा तक तिरी रसाई हो
तिरी निगाह फ़रोमाया हाथ है कोताह
एजाज़ है किसी का या गर्दिश-ए-ज़माना
नहीं इस खुली फ़ज़ा में कोई गोशा-ए-फ़राग़त
अनोखी वज़्अ' है सारे ज़माने से निराले हैं
वो कल के ग़म ओ ऐश पे कुछ हक़ नहीं रखता
ऐ ताइर-ए-लाहूती उस रिज़्क़ से मौत अच्छी
क्या इश्क़ एक ज़िंदगी-ए-मुस्तआ'र का
मिटा दिया मिरे साक़ी ने आलम-ए-मन-ओ-तू