अनोखी वज़्अ' है सारे ज़माने से निराले हैं
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या-रब रहने वाले हैं
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परिंदे की फ़रियाद
ये मेहर है बे-मेहरी-ए-सय्याद का पर्दा
हुई न आम जहाँ में कभी हुकूमत-ए-इश्क़
फ़ितरत ने न बख़्शा मुझे अंदेशा-ए-चालाक
ज़मीर-ए-लाला मय-ए-लाल से हुआ लबरेज़
ज़माना अक़्ल को समझा हुआ है मिशअल-ए-राह
ख़ुदी की शोख़ी ओ तुंदी में किब्र-ओ-नाज़ नहीं
तिरे सीने में दम है दिल नहीं है
तेरा इमाम बे-हुज़ूर तेरी नमाज़ बे-सुरूर
तिरा तन रूह से ना-आश्ना है
मीर-ए-सिपाह ना-सज़ा लश्करियाँ शिकस्ता सफ़
मुसलमाँ के लहू में है सलीक़ा दिल-नवाज़ी का