अंदाज़-ए-बयाँ गरचे बहुत शोख़ नहीं है
शायद कि उतर जाए तिरे दिल में मिरी बात
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उक़ाबी रूह जब बेदार होती है जवानों में
हज़रात-ए-इंसाँ
जवानों को मिरी आह-ए-सहर दे
तू ने ये क्या ग़ज़ब किया मुझ को भी फ़ाश कर दिया
गेसू-ए-ताबदार को और भी ताबदार कर
समुंदर से मिले प्यासे को शबनम
अनोखी वज़्अ' है सारे ज़माने से निराले हैं
हुई न आम जहाँ में कभी हुकूमत-ए-इश्क़
जम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है कि जिस में
अमीन-ए-राज़ है मर्दान-ए-हूर की दरवेशी
हज़ार ख़ौफ़ हो लेकिन ज़बाँ हो दिल की रफ़ीक़
ख़िरद वाक़िफ़ नहीं है नेक-ओ-बद से