जवानों को मिरी आह-ए-सहर दे
फिर इन शाहीं बच्चों को बाल-ओ-पर दे
ख़ुदाया आरज़ू मेरी यही है
मिरा नूर-ए-बसीरत आम कर दे
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नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
हुए मदफ़ून-ए-दरिया ज़ेर-ए-दरिया तैरने वाले
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
फ़रिश्ते आदम को जन्नत से रुख़्सत करते हैं
असर करे न करे सुन तो ले मिरी फ़रियाद
ज़लाम-ए-बहर में खो कर सँभल जा
कमाल-ए-तर्क नहीं आब-ओ-गिल से महजूरी
ख़ुदी की शोख़ी ओ तुंदी में किब्र-ओ-नाज़ नहीं
ज़माना अक़्ल को समझा हुआ है मिशअल-ए-राह
तिरा अंदेशा अफ़्लाकी नहीं है
फ़ितरत ने न बख़्शा मुझे अंदेशा-ए-चालाक
बुतों से तुझ को उमीदें ख़ुदा से नौमीदी