ज़माना अक़्ल को समझा हुआ है मिशअल-ए-राह
किसे ख़बर कि जुनूँ भी है साहिब-ए-इदराक
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ढूँड रहा है फ़रंग ऐश-ए-जहाँ का दवाम
कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे
ख़ुदी की जल्वतों में मुस्तफ़ाई
हकीम ओ आरिफ़ ओ सूफ़ी तमाम मस्त-ए-ज़ुहूर
ख़िरद से राह-रौ रौशन-बसर है
अंदाज़-ए-बयाँ गरचे बहुत शोख़ नहीं है
मुसलमाँ के लहू में है सलीक़ा दिल-नवाज़ी का
ख़ुदाई एहतिमाम-ए-ख़ुश्क-ओ-तर है
ताज़ा फिर दानिश-ए-हाज़िर ने किया सेहर-ए-क़ादिम
रहा न हल्क़ा-ए-सूफ़ी में सोज़-ए-मुश्ताक़ी
मिरी नवा से हुए ज़िंदा आरिफ़ ओ आमी
एक सरमस्ती ओ हैरत है सरापा तारीक