एक सरमस्ती ओ हैरत है सरापा तारीक
एक सरमस्ती ओ हैरत है तमाम आगाही
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यक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम
उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं
ने मोहरा बाक़ी ने मोहरा-बाज़ी
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
मजनूँ ने शहर छोड़ा तो सहरा भी छोड़ दे
अंदाज़-ए-बयाँ गरचे बहुत शोख़ नहीं है
सितारा क्या मिरी तक़दीर की ख़बर देगा
कभी तन्हाई-ए-कोह-ओ-दमन इश्क़
तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की
ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ
गोरिस्तान-ए-शाही