दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूँ या रब
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो
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अगर हंगामा-हा-ए-शौक़ से है ला-मकाँ ख़ाली
दिल से जो बात निकलती है असर रखती है
हर इक मक़ाम से आगे गुज़र गया मह-ए-नौ
अगर कज-रौ हैं अंजुम आसमाँ तेरा है या मेरा
मकानी हूँ कि आज़ाद-ए-मकाँ हूँ
मीर-ए-सिपाह ना-सज़ा लश्करियाँ शिकस्ता सफ़
नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर
पास था नाकामी-ए-सय्याद का ऐ हम-सफ़ीर
हम को तो मयस्सर नहीं मिट्टी का दिया भी
ये है ख़ुलासा-ए-इल्म-ए-क़लंदरी कि हयात
शिकवा
न हो तुग़्यान-ए-मुश्ताक़ी तो मैं रहता नहीं बाक़ी