ख़ुदाई एहतिमाम-ए-ख़ुश्क-ओ-तर है
ख़ुदा-वंदा ख़ुदाई दर्द-ए-सर है
व-लेकिन बंदगी असतग़फ़िरुल्लाह
ये दर्द-ए-सर नहीं दर्द-ए-जिगर है
Habib Jalib
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कुशादा दस्त-ए-करम जब वो बे-नियाज़ करे
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाही
अफ़्लाक से आता है नालों का जवाब आख़िर
अमीन-ए-राज़ है मर्दान-ए-हूर की दरवेशी
ज़मीर-ए-लाला मय-ए-लाल से हुआ लबरेज़
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
हिमाला
न पूछो मुझ से लज़्ज़त ख़ानमाँ-बर्बाद रहने की
वो हर्फ़-ए-राज़ कि मुझ को सिखा गया है जुनूँ
जलाल-ए-पादशाही हो कि जमहूरी तमाशा हो
ख़ुदी के ज़ोर से दुनिया पे छा जा
रम्ज़-ओ-ईमा इस ज़माने के लिए मौज़ूँ नहीं