बुतों से तुझ को उमीदें ख़ुदा से नौमीदी
मुझे बता तो सही और काफ़िरी क्या है
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कमाल-ए-तर्क नहीं आब-ओ-गिल से महजूरी
फ़ुनून-ए-लतीफ़ा
रूह-ए-अर्ज़ी आदम का इस्तिक़बाल करती है
मकतबों में कहीं रानाई-ए-अफ़कार भी है
तारिक़ की दुआ
ये कौन ग़ज़ल-ख़्वाँ है पुर-सोज़ ओ नशात-अंगेज़
अरब के सोज़ में साज़-ए-अजम है
कभी आवारा ओ बे-ख़ानुमाँ इश्क़
सौ सौ उमीदें बंधती है इक इक निगाह पर
मता-ए-बे-बहा है दर्द-ओ-सोज़-ए-आरज़ूमंदी
शुआ-ए-उम्मीद
हुई न आम जहाँ में कभी हुकूमत-ए-इश्क़