अरब के सोज़ में साज़-ए-अजम है
हरम का राज़ तौहीद-ए-उमम है
तही वहदत से है अंदेशा-ए-ग़र्ब
कि तहज़ीब-ए-फ़रंगी बे-हरम है
Wasi Shah
Parveen Shakir
Gulzar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2702) Peoples Rate This
हिमाला
ग़ुलामी में न काम आती हैं शमशीरें न तदबीरें
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा
मकतबों में कहीं रानाई-ए-अफ़कार भी है
हर इक मक़ाम से आगे गुज़र गया मह-ए-नौ
फ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर
न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालो
अक़्ल को तन्क़ीद से फ़ुर्सत नहीं
फ़रिश्ते आदम को जन्नत से रुख़्सत करते हैं
फ़क़्र के हैं मोजज़ात ताज ओ सरीर ओ सिपाह
तिरा अंदेशा अफ़्लाकी नहीं है
एक आरज़ू